प्रेगनेंसी हर महिला के जीवन का एक विशेष और परिवर्तनशील दौर होता है। इस समय हार्मोनल संतुलन बनाए रखना बेहद ज़रूरी होता है। एक महत्वपूर्ण वीडियो में डॉ. गौरी जगदाळे, कंसल्टेंट गायनेकोलॉजिस्ट व ऑब्स्टेट्रिशियन, उन महिलाओं के लिए ज़रूरी जानकारी साझा करती हैं जो प्रेग्नेंट हैं या प्रेगनेंसी प्लान कर रही हैं और थायरॉइड की समस्या से जूझ रही हैं। यह ब्लॉग उस वीडियो का सार है और इसका उद्देश्य है — गर्भावस्था में थायरॉइड के प्रभाव के प्रति जागरूकता फैलाना।
गले के निचले हिस्से में स्थित थायरॉइड ग्रंथि हमारे शरीर के कई ज़रूरी कार्यों को नियंत्रित करती है। यह ग्रंथि थायरॉक्सिन नामक हार्मोन बनाती है, जो मेटाबॉलिज्म, ऊर्जा स्तर और विकास को नियंत्रित करता है। थायरॉइड की समस्याएं दो प्रकार की होती हैं:
अगर कोई महिला प्रेगनेंसी प्लान कर रही है और उसने थायरॉइड (TSH) टेस्ट नहीं कराया है, तो वह अनजाने में अपने बच्चे को जोखिम में डाल सकती है। डॉ. जगदाळे बताती हैं कि गर्भधारण के पहले दो सप्ताह के भीतर ही बच्चे का मस्तिष्क विकसित होना शुरू हो जाता है। इस समय यदि माँ को थायरॉइड की समस्या हो तो शिशु के मानसिक विकास पर बुरा असर हो सकता है।
इसलिए, गर्भधारण से पहले या गर्भावस्था की शुरुआत में ही TSH टेस्ट कराना अनिवार्य है ताकि समय पर इलाज हो सके।
यदि गर्भावस्था के दौरान थायरॉइड की समस्या अनजानी या अनुपचारित रह जाती है, तो कई जटिलताएं हो सकती हैं:
इसलिए, गर्भावस्था के शुरुआती दौर में ही थायरॉइड की पहचान और इलाज बेहद ज़रूरी है।
डॉ. गौरी जगदाळे की सलाह अनुसार जरूरी कदम:
इन उपायों से गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं से बचा जा सकता है और एक स्वस्थ गर्भधारण सुनिश्चित किया जा सकता है।
डॉ. जगदाळे यह स्पष्ट करती हैं कि गर्भावस्था में थायरॉइड की समस्या कोई डरने वाली बात नहीं है। समय पर जांच, सही दवाएं और संतुलित आहार — इन सबके ज़रिए एक स्वस्थ, सुरक्षित और आनंददायक प्रेगनेंसी संभव है।